मत टालो

हम सदैव इस बात का स्मरण रखें कि प्रत्येक क्षण हमारा जीवन क्षीणता को प्राप्त हो रहा है। हम इस क्षण के प्रभाव को रोक नहीं सकते, किन्तु अगर विवेक का आश्रय ले लें तो प्रत्येक क्षण हमारे जीवन का वरदान बन सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि हम शीघ्रातिशीघ्र इस पाठ को याद कर लें कि आज का काम कल पर नहीं टालना है। अगर हमें यह पाठ याद हो गया तो फिर हमें कभी भी पछताना नहीं पड़ेगा। इस कथन को डोंगरे महाराज द्वारा प्रस्तुत इस प्रसिद्ध उदाहरण से समझने का प्रयास करें-
एक दिन धर्मराज युधिष्ठिर के पास कोई याचक आया। धर्मराज उस समय किसी आवश्यक काम में संलग्न थे। अत: उन्होंने याचक को दूसरे दिन आने को कहा। भीमसेन ने जब यह सुना तो तत्काल विजय-दुन्दुभि बजाने लगा। सबको आश्चर्य हुआ, क्योंकि विजय-दुन्दुभि तो युद्ध में विजय प्राप्त करने के पश्चात् बजाई जाती है और यहां तो ऎसा प्रसंग कोई नहीं था। फिर भीमसेन ने ऎसा क्यों किया? भीम ने कहा- आज बड़े भैया ने काल पर विजय प्राप्त कर ली है। उन्हें पूरा विश्वास है कि कल तक काल उनको स्पर्श नहीं कर सकता। कल तक वे निश्चित रूप से जीवित रहने वाले हैं। इसलिए उन्होंने याचक को कल आने को कहा है। चूंकि उन्होंने काल को जीत लिया, अत: मैं विजय-दुन्दुभि बजा रहा हूं। धर्मराज भीमसेन के कटाक्ष को समझ गए। उन्हें अपनी भूल समझ में आ गई। सचमुच कल किसने देखा है! याचक को बुलवाकर दान दिया गया। शुभस्य शीघ्रम्! सत्कर्म को कभी कल पर मत छोड़ो। उसे तत्काल करो।

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